Amrita Pritam Quotes in Hindi

Amrita Pritam Quotes in Hindi

अमृता प्रीतम एक भारतीय उपन्यासकार, निबंधकार और कवि थी, जिन्होंने पंजाबी और हिंदी भाषा में लिखा है। अमृता प्रीतम का पंजाबी साहित्य में बड़ा योगदान रहा है, जिसकी वजह से उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

अमृता प्रीतम के कार्यो में 100 से भी अधिक पुस्तकें शामिल है जिनका कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया। प्रीतम को सबसे जायदा उनकी कविता अज्ज आखान वारिस शाह नु के लिया याद किया जाता है जो भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान नरसंहारों की पीड़ा अभिव्यक्त करती है।

अमृता प्रीतम के कोट्स हिंदी में

मर्द ने औरत के साथ अभी तक सोना ही सीखा है, जागना नहीं।
इसीलिए मर्द और औरत का रिश्ता उलझन का शिकार रहता है।

तेरा मिलना ऐसा होता है जैसे कोई हथेली पर एक वक़्त की रोजी रख दे।

ज़िन्दगी तुम्हारे उसी गुण का इम्तिहान लेती है,
जो तुम्हारे भीतर मौजूद है, मेरे अन्दर इश्क़ था।

मैंने अपनी ज़िन्दगी की साड़ी कड़वाहट पी ली,
क्यूंकि इस मैं तुम्हारे इश्क़ की एक बूँद मिली थी.

सारे देशों के दुःखों की भाषा एक ही होती है।

चंगा होया जे तू परायी होगईआं,
मूक गयी चिंता तनु अपनाएं दी

सभ्यता का युग तब आएगा, जब औरत की मर्ज़ी के बिना, कोई औरत को हाथ नहीं लगायेगा।

किथे? किस तरह? पता नहीं
शायद तेरे तखियल दी चिनग बांके
तेरे कैनवास ते उतरेंगी
या खोरे तेरी कैनवास डे उत्ते
इक्क रहस्मयी लकीर बनके
खामोश तनु तकदी रवानगी

पैर खोलो तो धरती अपनी है, पंख खोलो तो आसमान।

ऐ जिस्म मुक्क्ड़ है
तन सब कुछ मुक्क जांदा
पर चेतियं डे धागे
कायनाती काना डे हुन्दे
मैं उन्हे काना न चुनेगी
धागेयान नु वलांगी
ते तनु मैं फेर मिलेंगी

इंसान भी एक समुद्र है किसी को क्या मालूम कि
कितने हादसे और कितनी यादें उसमें समाई हुई होती हैं।

में थी और शायद तू भी…
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पे बैठा
शायद एहसास के एक मोड़ पर चल रहा
पर वह
पुराने-ऐतिहासिक समय की बात है

मैं तुझे फिर मिलूँगी कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरी कल्पनाओं की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी कहाँ कैसे पता नहीं।

उम्र दे कागज़ उत्ते
इश्क़ तेरे अँगूढ़ा लाया
कौन हिसाब चुकाएगा…

तेरे इश्क की एक बूंद इसमें मिल गई थी
इसलिए मैंने उम्र की सारी कड़वाहट पीली।

रब बक्शे न बक्शे
उसकी रज़ा
अस्सी यार नु सजदा कर बैठे

मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था
फिर समुन्द्र को खुदा जाने क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई और हंस कर कुछ दूर हो गया

उम्र के काग़ज़ पर
तेरे इश्क़ ने अँगूठा लगाया,
हिसाब कौन चुकायेगा !

उस मज़हब के माथे पर से
यह ख़ून कौन धोएगा
जिसके आशिक़ हर गुनाह
मज़हब के नाम से करते,
राहों पर काटें बिछाते हैं,
ज़बान से ज़हर उगलते,
जवान खून को बहाते हैं
और खून से भरे हाथ
मज़हब की ओट में छिपाते हैं

तुम मिले
तो कई जन्म मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए।

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता हूं

तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।

यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे।

तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।

कहानी लिखने वाला बड़ा नहीं होता,
बड़ा वह है जिसने कहानी अपने जिस्म पर झेली है।

धरती का दिल धड़क रहा है
सुना है आज
टहनियों के घर फूल मेहमान हुए हैं

पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के हर शहर की
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
समझना वह मेरा घर है।

जितना लिखा गया तुझे ऐ इश्क़
सोचती हूं उतना निभाया क्यू नहीं गया।

कहानी लिखने वाला बड़ा नहीं होता,
बड़ा वह है जिसने कहानी अपने जिस्म पर झेली है।

जानते हो मेरे पास कुछ संदेशे हैं
जिनका इंतज़ार किसी को भी नहीं

यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे।

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ, कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता हूं

खुदा जाने
उसने कैसी तलब पी थी
बिजली की लकीर की तरह
उसने मुझे देखा
कहा
तुम किसी से रास्ता न मांगना
और किसी भी दिवार को
हाथ न लगाना
न ही घबराना
न किसी के बहलावे में आना
बादलों की भीड़ में से
तुम पवन की तरह गुजर जाना।

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता हूं

प्रेम में पड़ी स्त्री को
तुम्हारे साथ सोने से ज़्यादा अच्छा लगता है
तुम्हारे साथ जागना।

यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे।

सपने – जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है

कहानी लिखने वाला बड़ा नहीं होता,
बड़ा वह है जिसने कहानी अपने जिस्म पर झेली है।

स्त्री तो ख़ुद डूब जाने को तैयार रहती है,
समंदर अगर उसकी पसन्द का हो।

पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के हर शहर की
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
समझना वह मेरा घर है।

मुश्किल है इमरोज होना
रोज रोज क्या, एक रोज होना

फिर बरसों के मोह को
एक ज़हर की तरह पीकर
उसने काँपते हाथों से
मेरा हाथ पकड़ा
चल क्षणों के सिर पर
एक छत डालें
वह देख परे सामने उधर
सच और झूठ के बीच
कुछ ख़ाली जगह है

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

यह कैसा हुस्न और कैसा इश्क़
और तू कैसी अभिसारिका
अपने किसी महबूब की
तू आवाज़ क्यों नहीं सुनती

जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी

आँखों में कंकड़ छितरा गए
और नज़र जख़्मी हो गई
कुछ दिखाई नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है।

जिसके साथ होकर भी तुम अकेले रह सको,
वही साथ करने योग्य है।

जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
कागज के ऊपर उभर आईं
केसर की लकीरें
सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गई
हमारी दोनों की तकदीरें

मैं उस प्यार के गीत लिखूँगी,
जो गमले में नहीं उगता,
जो सिर्फ धरती में उग सकता है

जिससे एक मर्तबा प्रेम हो जाए
फिर जीवन भर नहीं टूटता
अतीत की स्मृतियों से वह कभी रिक्त नहीं होता
प्रेम कि मृत्यु हमारी आंशिक मृत्यु है
हर बार प्रेम के मरने पर हमारा एक हिस्सा भी हमेशा के लिए मर जाता है।

कई बातें ऐसी होती हैं
जिन्हें शब्दों की सज़ा नहीं देनी चाहिए

रात ऊँघ रही है
किसी ने इन्सान की
छाती में सेंध लगाई है
हर चोरी से भयानक
यह सपनों की चोरी है।

भारतीय मर्द अब भी औरतों को परंपरागत काम करते देखने के आदी हैं
उन्हें बुद्धिमान औरतों की संगत तो चाहिए होती है
लेकिन शादी के लिए नहीं
एक सशक्त महिला के साथ की कद्र करना अब भी उन्हें नहीं आया है

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

जीवन भी बड़ा अजीब होता है।
कई बार उसकी परतों में से हम
जिस रंग को खोजते हैं,
वह नहीं निकलता पर
कोई ऐसा रंग निकल आता है
जो उससे भी ज्यादा खूबसूरत होता है।

मेरी सेज हाज़िर है
पर जूते और कमीज़ की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज़ है

तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्क की महक
कुछ तेरी सांसों में
कुछ हवा में मिल गयी

अंधेरे का कोई पार नही
मेले के शोर में भी खामोशी का आलम है
और तुम्हारी याद इस तरह जैसे धूप का एक टुकड़ा।

ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खैर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले

काया की हक़ीक़त से लेकर
काया की आबरू तक मैं थी
काया के हुस्न से लेकर
काया के इश्क़ तक तू था

मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दीं

तड़प किसे कहते हैं
तू यह नहीं जानती
किसी पर कोई अपनी
ज़िन्दगी क्यों निसार करता है
अपने दोनों जहाँ
कोई दाँव पर लगाता है
नामुराद हँसता है
और हार जाता है

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है