अरुणिमा सिन्हा एक भारतीय पर्वतारोही और खिलाड़ी हैं। वह माउंट एवरेस्ट (नेपाल), माउंट किलिमंजारो (तंजानिया), माउंट एल्ब्रस (रूस), माउंट कोसियुस्को (ऑस्ट्रेलिया), माउंट एकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कार्सटेन्ज़ पिरामिड (इंडोनेशिया) और माउंट विंसन (अंटार्कटिका) को फतह करने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला हैं।
2011 में वह ट्रैन से सफर कर रही थी जिसमे लुटेरे घुस आये, इस पर अरुणिमा ने उनका विरोध किया जिस पर लुटेरों ने उन्हें चलती ट्रैन से नीचे फेंक दिया। इस दर्दनाक घटना की वजह से उनके दाहिने पैर और रीढ़ की हड्डी में कई फ्रैक्चर हो गए। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2015 पद्म श्री पुरस्कार ( भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया।
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई, 1989 को लखनऊ के पास अम्बेडकर नगर में हुआ था, जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्तिथ है। उनके पिता भारतीय सेना में थे और उनकी माँ स्वास्थ्य विभाग में सुपरवाइज़र थीं। इसके सिवा उनकी एक बड़ी बहिन और एक छोटा भाई भी हैं।
अरुणिमा सिन्हा एक राष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी थी, लेकिन जीवन में वो अर्धसैनिक बलों में शामिल होके देश की सेवा करनी चाहती थी। वो CISF की परीक्षा देने के लिए पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन में बैठ के लखनऊ से दिल्ली जा रही थी, और इसी यात्रा के दौरान उनके साथ हादसा होता है, जिसमे वो अपना एक पैर गवा देती है।
अरुणिमा सिन्हा के कोट्स हिंदी में
जीवन में अपने लक्ष्य को ऊंचा रखें, और तब तक न रुकें जब तक आप वहां न पहुंच जाएं।
अक्षम वे नहीं हैं जो ‘शारीरिक रूप से अक्षम’ हैं। वास्तव में, विकलांग वे हैं जिनके विचार आहत हैं। जो जीवन में हार मान लेते हैं वे विकलांग होते हैं।
कठिनाइयां अक्सर आम लोगों को एक असाधारण नियति के लिए तैयार करती हैं।
उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
जब तक आप टूट नहीं जाते, आप नहीं जानते कि आप किस चीज से बने हैं। यह खुद को फिर से बनाने की क्षमता देता है, लेकिन पहले से कहीं ज्यादा मजबूत।
सफलता इस बात से नहीं मापी जाती है कि आप दूसरों की तुलना में क्या करते हैं, यह इस बात से मापा जाता है कि आप उस क्षमता से क्या करते हैं जो भगवान ने आपको दी है।
आत्मविश्वास का मार्ग दैनिक उपलब्धियों से प्रशस्त होता है।
कभी-कभी आपको अपने जीवन के सबसे बुरे दिनों से गुजरना पड़ता है। तभी आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
यहां तक कि माउंट एवरेस्ट भी संभव है। यदि आप हार नहीं मानते।
जहा चाह होती है वहा राह हो ही जाती हैं
मैंने अपने दिल, दिमाग, अंतरात्मा में यह बात सोच ली थी कि आज तुम्हारा दिन है जितना चाहो जैसे चाहो बोल लो, लेकिन एक दिन तो मेरा आने वाला है।
मैंने हॉस्पिटल के बेड पर ही डिसाइड कर लिया की मुझे वॉलीबॉल नहीं, लाइफ का सबसे टॉप गेम Mountaineering चुनना हैं।
लोगों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि वो आपके फिजिकल को देखते हैं, आपकी अंतरात्मा में क्या चल रहा है यह नहीं देखते।
सबसे बड़ा मोटिवेटर आप खुद हैं।
जिस दिन किसी भी लक्ष्य के प्रति आपकी अंतरात्मा जाग गई, आपको लक्ष्य तक पहुंचने में कोई नही रोक सकता ।
प्लानिंग कर ली लेकिन जब हम फील्ड में उतरते हैं, तब पता चलता है कि हम क्या हैं।
जैसा हम सोचते हैं हमारी बॉडी उसी तरह से काम करना शुरू कर देती हैं।
जिंदगी में गोल्डन चांस बार-बार नहीं आते हैं। यह कभी-कभी आता है और यह आपके ऊपर है कि आप इसे पकड़ कर रखते हो या छोड़ देते हो।
जिंदगी में कभी कभी परिस्थिति ऐसी आ जाती हैं जब सिर्फ आप अकेले होते हो, निर्णय सिर्फ आपको ही लेना होता है।
सिर्फ एक एक कदम आगे बढ़ाना, फिर देखना आप टॉप पर होंगे।
विकलांगता आपके शरीर में है…चलेगा। लेकिन विकलांगता आपकी सोच में नहीं होनी चाहिए।
अगर किसी को भी अपना लक्ष्य पाना है तो जब तक दिमाग में लक्ष्य के प्रति पागलपन नहीं आएगा, आप उसे नहीं पा सकते।
मैंने अपनी हर आलोचना को एक चैलेंज के रूप में लिया हैं।
ऊपर वाले ने अगर मुझे बचाया है तो कुछ ना कुछ इतिहास रचने के लिए बचाया हैं।
भाग्य(Luck) भी उसी का साथ देता है जिसके अंदर जीतने का जज्बा हो।
सब कुछ हम में हैं। हम जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं।