राम किसान यादव को लोग स्वामी रामदेव और बाबा रामदेव के नाम से जानते है। रामदेव, एक भारतीय योग गुरु और व्यापारी हैं, उन्हें मुख्य रूप से भारत में योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। रामदेव 2002 से विभिन्न टीवी चैनलों पर अपनी योग कक्षाओं का प्रसारण करते हुए लोगो को घर बैठे बैठे योग सीखा रहे है।
इसके सिवा रामदेव योग शिविरों का आयोजन और संचालन भी करते हैं जहाँ कोई शुल्क का भुगतान करके योग और आयुर्वेदिक इलाज ले सकता है। रामदेव ने अपने सहयोगी बालकृष्ण के साथ पतंजलि आयुर्वेद की सह-स्थापना की थी।
रामदेव का जन्म 1965 में महेंद्रगढ़ में हुआ था, जो भारत के हरियाणा राज्य में स्तिथ है। बाबा रामदेव के पिता का नाम रामनिवास यादव और माँ का नाम गुलाबो देवी है। रामदेव के माता पिता दोनों किसान थे। रामदेव की कुल संपत्ति 1400 करोड़ से जायदा की है।
रामदेव के कोट्स हिंदी में
प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है।
नकारात्मक विचार मानसिक रोग का कारण हैं।
कर्म ही मेरा धर्म है
कर्म ही मेरी प्रार्थना है
कर्म जगत और जीवन का सत्य है
विचारों और धारणाओं की पवित्रता और नियंत्रण ही सफलता का सेतु है।
कोई देश तभी स्वस्थ हो सकता है जब उसके लोग स्वस्थ हों।
युवा आगे आएं, स्वस्थ रहें और देश का नेतृत्व करें।
मेरी हर बुरी या अच्छी हरकत मेरे पूरे देश को प्रभावित करती है।
हर सुबह एक नया जन्म है और मेरा एक दिन एक उम्र के बराबर है। आज मैं पूरा करूंगा जो भगवान ने मुझे पृथ्वी पर करने के लिए भेजा है।
यदि आप मन के में उठने वाली लहरों को नियंत्रित कर सकते हैं, तो आप योग का अनुभव करेंगे।
हमारे भीतर हमेशा एक प्रकाश होता है जो सभी दुखों और शोक से मुक्त होता है, चाहे हम कितने भी दुख का अनुभव कर रहे हों।
योग आपको वर्तमान क्षण में ले जाता है, एकमात्र स्थान जहां जीवन मौजूद है।
एक भक्त को हमेशा अच्छे कर्मों में शामिल होना चाहिए क्योंकि भगवान दुष्टों को दंड देते हैं और शुद्ध हृदय वालो की रक्षा करते हैं।
एक अच्छा, स्वस्थ और लंबा जीवन जीने के लिए प्रत्येक सप्ताह में कम से कम एक दिन का उपवास रखें। यह शरीर के अंदर आंतों और अवांछित तरल अपशिष्टों को साफ करता है।
दोपहर का भोजन करने के बाद कभी नहीं सोना चाहिए, इससे फिटनेस बढ़ती है।
मनुष्य आध्यात्मिक ज्ञान और परम सुख को प्राप्त करता है, जब वह प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखता है।
तपस्या से व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
यदि आपको लगता है कि बदला लेना उचित है, तो याद रखें कि क्षमा करना दिव्यता है।
भगवान ने हमें कुछ बड़ा करने के लिए बनाया है।
भागो मत! छिपाओ मत! दौड़ने वाले लोग कायर और कमजोर होते हैं।
जीवन भगवान की सबसे बडी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बडा उपहार है।
साधूनां दर्शनं पुण्यं, “तिर्थभूता हि साधव:” देह के भीतर देही को देखो?
अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं।
प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है।
मैं माँ भारती का अम्रतपुत्र हूँ, “माता भूमि: पुत्रोहं प्रथिव्या:”।
“न” के लिए अनुमति नहीं है।
मैं पहले माँ भारती का पुत्र हूँ बाद में सन्यासी, ग्रहस्थी, नेता अभिनेता, कर्मचारी, अधिकारी या व्यापारी हूँ।
आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रक्रति तय होती शाकाहार से स्वभाव शांत रहता मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है।
मैं सदा प्रभु में हूँ, मेरा प्रभु सदा मुझमें है।
उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोडो!
मैं अपने जीवन पुष्प से माँ भारती की आराधना करुँगा।
हमारा जीना व दुनियाँ से जाना ही गौरवपूर्ण होने चाहिए।
निष्काम कर्म, कर्म का अभाव नहीं, कर्तृत्व के अहंकार का अभाव होता है।
वैचारिक दरिद्रता ही देश के दुःख, अभाव पीडा व अवनति का कारण है।
जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ तो मैंने स्वयं को संबोधि व्रक्ष की छाया में पूर्ण त्रप्त पाया।
अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुध्द सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है।
ध्यान-उपासना के द्वारा जब तुम ईश्वरीय शक्तियों के संवाहक बन जाते हो तब तुम्हें निमित्त बनाकर भागवत शक्ति कार्य कर रही होती है।
विचारशीलता ही मनुष्यता, और विचारहीनता ही पशुता है।
ज्ञान का अर्थ मात्र जानना नहीं, वैसा हो जाना है।
सदविचार ही सद्व्यवहार का मूल है।
मेरे भीतर संकल्प की अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित है। मेरे जीवन का पथ सदा प्रकाशमान है।
विचारों की पवित्रता ही नैतिकता है।
माता-पिता के चरणों में चारों धाम हैं। माता-पिता इस धरती के भगवान हैं।
पवित्र विचार-प्रवाह ही जीवन है तथा विचार-प्रवाह का विघटन ही मत्यु है।
अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें गलतियों से बचाता है।
बुढापा आयु नहीं, विचारों का परिणाम है।
सुख बाहर से नहीं भीतर से आता है।
विचारवान व संस्कारवान ही अमीर व महान है तथा विचारहीन ही कंगाल व दरिद्र है।
हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं।
भगवान सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं।
भीड में खोया हुआ इंसान खोज लिया जाता है परन्तु विचारों की भीड के बीहड में भटकते हुए इंसान का पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है।
यदि बचपन व माँ की कोख की याद रहे तो हम कभी भी माँ-बाप के क्रतघ्न नहीं हो सकते। अपमान की ऊचाईयाँ छूने के बाद भी अतीत की याद व्यक्ति के जमीन से पैर नहीं उखडने देती।
विचार शहादत, कुर्बानी, शक्ति, शौर्य, साहस व स्वाभिमान है। विचार आग व तूफान है साथ ही शान्ति व सन्तुष्टी का पैगाम है।
“मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव” की संस्कृति अपनाओ!
विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है।
सदा चेहरे पर प्रसन्नता व मुस्कान रखो। दूसरों को प्रसन्नता दो, तुम्हें प्रसन्नता मिलेगी।
विचार ही सम्पूर्ण खुशियों का आधार है।
द्रढता हो, जिद्द नहीं। बहादुरी हो, जल्दबाजी नहीं। दया हो, कमजोरी नहीं।
विचारों का ही परिणाम है-हमारा सम्पूर्ण जीवन। विचार ही बीज है, जीवनरुपी इस व्रक्ष का।
बाह्य जगत में प्रसिध्दि की तीव्र लालसा का अर्थ है-तुम्हें आन्तरिक सम्रध्द व शान्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है।
पवित्र विचार प्रवाह ही मधुर व प्रभावशाली वाणी का मूल स्त्रोत है।
इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं।
पराक्रमशीलता, राष्ट्रवादिता, पारदर्शिता, दूरदर्शिता, आध्यात्मिक, मानवता एवं विनयशीलता मेरी कार्यशैली के आदर्श हैं।
वैचारिक द्रढता ही देश की सुख-सम्रध्दि व विकास का मूल मंत्र है।
मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र व देश की सभ्यता व संस्कृति की अभिव्यक्ति हूँ।
आरोग्य हमारा जन्म सिध्द अधिकार है।
मैं पुरुषार्थवादी, राष्ट्र्वादी, मानवतावादी व अध्यात्मवादी हूँ।
बिना सेवा के चित्त शुध्दि नहीं होती और चित्तशुध्दि के बिना परमात्मतत्व की अनुभूति नहीं होती।
मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैंने इस पवित्र भूमि व देश में जन्म लिया है।
जहाँ मैं और मेरा जुड जाता है वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं।
“इदं राष्ट्राय इदन्न मम” मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
स्वधर्म में अवस्थित रहकर स्वकर्म से परमात्मा की पूजा करते हुए तुम्हें समाधि व सिध्दि मिलेगी।
प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है।
माता-पिता का बच्चों के प्रति, आचार्य का शिष्यों के प्रति, राष्ट्रभक्त का मातृभूमि के प्रति ही सच्चा प्रेम है।
जीवन को छोटे उद्देश्यों के लिए जीना जीवन का अपमान है।