बुल्ले शाह का असली नाम सैयद अब्दुल्ला शाह कादरी था, जो 17वीं सदी के एक पंजाबी दार्शनिक और सूफी कवि थे। उनके पहले आध्यात्मिक गुरु लाहौर के सूफी मुर्शिद शाह इनायत कादिरी थे। वह एक रहस्यवादी कवि थे और उन्हें ‘पंजाबी ज्ञानोदय के पिता‘ के रूप में जाना जाता है।
बुल्लेया का जन्म 1680 में मुगल साम्राज्य के उच में हुआ था, जो वर्तमान पंजाब, पाकिस्तान में स्तिथ है। बुल्ले शाह के पिता का नाम शाह मुहम्मद दरवेश और माँ का नाम फातिमा बीबी था।
2004 में, भारतीय संगीतकार रब्बी शेरगिल ने अपनी पहली एल्बम रब्बी में बुल्ले शाह की कविता ‘बुल्लाह की जाना‘ को रॉक/फ़्यूज़न गीत में बदल दिया; और ये गीत भारत और पाकिस्तान में 2005 में एक चार्ट-टॉपर बना। ये गाना सुनने के लिए यहाँ क्लिक करे।
बुल्ले शाह के कोट्स हिंदी में
आपने हजारों ज्ञान की किताबें पढ़ी हैं, क्या आपने कभी खुद को पढ़ने की कोशिश की है?
कोई हीर कोई रांझा बना है, इश्क़ वे विच बुल्लेशाह हर कोई फरीर क्यों बना है.
गुरूर ना कर शाह ए शरीर का
तेरा भी “खाक” होगा मेरा भी खाक होगा
अपने अन्दरौ झुड मुका, सच द ढोल बजाया कर
रूखी सूखी खाके तू, सजदे विच जाया कर
जहर देख के पिता ते की किता, इश्क शोच के किता ते की किता
दिल दे के दिल लेण दी आस रखी, वे बुल्ल्या प्यार वी लालच नाल किता ते की किता
बुल्ला कसर नाम कसूर है, ओथे मूँहों ना सकण बोल।
ओथे सच्चे गरदन मारीए, ओथे झूठे करन कलोल।।
जिस तरह चाहे नचा ले तू इशारे पे मुझे ऐ मालिक
तेरे ही लिखे हुए अफ़साने का किरदार हूँ मैं
रांझा रांझा करदी नी मैं आपे रांझा होई रांझा मैं विच,
मैं रांझे विच, होर खयाल न कोई नी मैं कमली हां
इश्क हकीकी ने मुट्ठी कुड़े, मैनूं दस्सो पिया दा देस ।
मुँह दिखलावे और छुपे छल-बल है जगदीस
पास रहे हर न मिले इस को बिसवे बीस
जहर वेख के पीता… ते की पीता…?
इश्क़ सोच के कीता.. ते की कीता..?
दिल दे के दिल लेैन दि आस राखी वे बुल्लेया…
प्यार वी लालच नाल कीता ते की कीता..?
ओ बुल्ले शाह, ज़हर वैख के ‘पीता’ ते के पीता ?
इश्क़ सोच के कीता ते के कीता?
दिल दे के , दिल लेन दी आस रखी?
प्यार इहो जिया कीता, ते के कीता
दिल नू लगे रोन तो की करिए
किसी के याद विच अखिया रोन तो की करिए
सानू दी मिलन दी आस रहती है हर वेड़े बुल्लेया
अगर यार ही भूल जाड़ तो की करिए
राह से गुजरते हुए रोज़ादार मुसलमानों ने कहा: तुम्हें शर्म नहीं आती, रमज़ान के महीने में गाजरें चर रहे हो
बुल्ले नूं समझावण आइयां
भैणां ते भरजाइयां
मन लै बुल्लया,
साडा कहना छड़ दे पल्ला राइयां
आल नबी, औलाद अली नूं तूं क्यों लीकां लाइयां?
गुस्से विच ना आया कर, ठंडा कर के खाया कर
दिन तेरे भी फिर जाएंगे, ऐसे ना घबराया कर
बुत ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
बुल्ल्हा शौह दी मजलस बह के,
सभ करनी मेरी छुट्टी कुड़े,
मैनूं दस्सो पिया दा देस।
जब न मंदिर थे न मस्जिद थीं न गिरजाघर कहीं
तब हर जगह इंसान थे, सब के एक भगवान थे।।
हाथजोड़ कर पाँव पडूँगी
आजिज़ होंकर बिनति करुँगी
झगडा कर भर झोली लूंगी,
नूर मोहम्मद सल्लल्लाह होरी
खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह
रंग बड़े सुर्ख होय ने.. पर होया नहीं फकीरी ते अबीर दा..
सुफी़ मुर्शिद बड़े होये ने.. पर होया नहीं बुल्ले शाह दी नजीर दा…
इकना आस मुड़न दी आहे,
इक सीख कबाब चढ़ाइयां ।।
बुल्लेशाह की वस्स ओनां,
जो मार तकदीर फसाइयां ।।
नमाज़ रोज़ा ओहनां की करना,
जिन्हां प्रेम सुराही लुट्टी कुड़े,
मैनूं दस्सो पिया दा देस।
बर्तन खाली हो तो ये मत समझो की मांगने चला है!
हो सकता है सब कुछ बाट के आया हो।
मनतक मअने कन्नज़ कदूरी,
मैं पढ़ पढ़ इलम वगुच्ची कुड़े,
मैनूं दस्सो पिया दा देस।
रंग बड़े सुर्ख होय ने..
पर होया नहीं फकीरी ते अबीर दा..
सुफी़ मुर्शिद बड़े होये ने..
पर होया नहीं बुल्ले शाह दी नजीर दा…
ऐसे नाजुक दील हैं लोख्या।
साडा यार नु दिल न धुखाया कर।।
ना झूठे वादे किथ्था कर
,ना झूठे कस्मे खाया कर,,
तैनू किन्नी बार वाख्या वे ।
मैनू बार बार ना आजमाया कर।।
तेरी याद विच मै मर जावा।
मैंनु इतना ‘याद’ ना आया कर ।।
चढ़दे सूरज ढलदे देखे,
बुझदे दीवे बलदे देखे।
हीरे दा कोइ मुल ना जाणे,
खोटे सिक्के चलदे देखे ।
बुतखाने झूठी शान है इक धोखा है वहां
मस्जिद मे बस मलाल है नही मौका है जहां
टटोलिये खुद मे खुदा को भटके हो तुम कहाँ
आईये लौटकर करीब दिल के शुकूं रहता है वहाँ